शनिवार, 4 अप्रैल 2009

हमारी राजनीति में हम कितने

मध्य-युग सराहनीय नहीं रहा क्योंकि वहां , उस समय ईश्वरवाद का बोलबाला था। ईश्वर इसलिए इतने महत्त्वपूर्ण हो चले थे क्योंकि सत्ता-सरकारें जनता से दूर और विमुख हो चली थीं। जनता की तो आदत है - अवचेतन में बैठी हुई जड़ता है कि बिना राजा के तो जी ही नहीं सकती । और जो राजा लोग थे उन्हें यह बात ही भुला गई थी कि जनता के प्रति उनकी कुछ जिम्मेदारी भी है । सो, जैसे-तैसे जनता ने अपना राजा ( अप्रत्यक्ष-राजा) भगवान को मान लिया। यह किसी को नहीं पता कि भगवान ने इन जनता को अपनी प्रजा मानी या नहीं। लेकिन जनता की आदत आज भी वही है। देखते होंगे, जब भाईसाहब या बहनजी के हाथ से बात निकलने लगती है तो तुरंत ईश्वरीय-न्याय की गुहार लगते हैं। पर, भला ऐसा क्यों?
बड़े-बड़े लोग आकर, या टीवी से या अख़बारों से हमें सिखा-बता रहे है कि आपका वोट कीमती है - इसका प्रयोग अवश्य करें। लेकिन इस बहुमूल्य वोट का इस्तेमाल हम किसके लिए करें?
इंदिरा गाँधी के दो पुत्र- श्री राहुल गाँधी और श्री वरुण गाँधी।
ये दोनों क्यों हमारे नेता हैं?
क्योंकि ये नेहरू-इंदिरा-संजय-राजीव के परिवार के हैं!
मैं चाहे जितना बकबक करूँ, इन्हें नेता तो मानना ही होगा ।
हम भारत के लोग शासन चालने में सचमुच सक्षम नहीं है।
उत्सव की तरह मैं भी किसी दुराचारी को दे आऊंगा अपना कीमती वोट ।
लेकिन इस सवाल से न अब आजाद हूँ ,न शायद तब ही छूट पाऊंगा कि राजनीति में मेरी कितनी भागीदारी है?
आज भी तो जनता ऊपर मेंह उठाये ईश्वरीय-न्याय का ही रास्ता देख रही है।
हे महान रोम के महान स्वतंत्र नागरिको!
आपको अपने वोट का कुछ अर्थ समझ में आता है?
फिर भी आपका निरर्थक वोट एक सार्थक सरकार बनने के अनिवार्य है।
यह बता पाना तो थोड़ा मुश्किल है कि हमारी राजनीति में हम कितने हैं , हम में तो राजनीति कूट-कूट कर भरी हुई है । हम राजनीति के उपादान है यानि कच्चा माल ।
अब तो आई बात समझ में -
आप शत-प्रतिशत राजनीति में ही हैं । बधाई! ! !

4 टिप्‍पणियां:

रंजना ने कहा…

Bahut bahut sahi sateek kaha aapne...

Neeraj Kumar ने कहा…

Sir, Aisa hi hota hai...
Aniruddh Babu ki beti ki shadi nahi ho rahi, doshi bhagwaan, Radharaman ke bete ko naukari nahi mil rahi, bhagwaan ka hai dosh, Ramnarayan ki Gaay mar gayi, bhagwaan ka hai dosh.

Isi mansikta ke karan berojgari, mahangayi, garibi, accident, mahamari, badh, bhookamp, bhrastachar--- sab kuchh hai sarkaar ke karan...
Main thoda ghumkar nahi chal sakta, isliye devider tod diya...
Red light ke samay road clear tha to aage badh gaya, aage crossing par accident ho gaya to, sarkar jawab de aur harjaana bhi... railway line par pharig hone baitha, train ne kuchal diya, railway bete ko noukari kaise nahi degi...
Matlab yah hai, Naa ham sudhrenge, naa achchhi sarkar milegi...

Rajat Narula ने कहा…

you have brought the reality in a very appropriate manner.

रवीन्द्र दास ने कहा…

Ranjnaji,
neeraj,
aur,
Rajat ji
bahut bahut dhanyvad.
lekin ham sabki khal badi moti hai, asar nahi hota.