शनिवार, 6 जून 2009

कविता, ओ कविता

हमारे ब्लॉग का नाम है कविता-समय , लेकिन हमने इस पर एक भी कविता नहीं रखी। लेकिन आज कविता को आपके सामने शर्मो-हया की दीवार तोड़ कर लाऊंगा ( वैसे आप मेरी कवितायें मेरे दुसरे ब्लॉग " अलक्षित" पर तो पढ़ते ही होंगे - आज पहली बार कविता आएगी ' कविता-समय' पर )

कविता , ओ कविता!
मुझे मालूम है कि तू न तो मेरी प्रेमिका है
न पत्नी या रखैल
माँ, बहन या बेटी .........
तू तो कुछ भी नहीं है मेरी
मुझे तो यहाँ तक भी नहीं पता है
कि तुझे मेरे होने का अहसास है भी या नहीं
फिर भी , मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता
कि तू क्या सोचती है मेरे बारे में
या कुछ सोचती भी है या नहीं
लेकिन जब कोई मनचला करता है शरारत तेरे साथ
मेरा जी जलता है
जब कोई गढ़ता है सिद्धांत
कि नहीं है जरुरत दुनिया को कविता की
तो जी करता है
बजाऊँ उसके कान के नीचे जोर का तमाचा
ओ कविता !
तेरे बगैर दुनिया में
आदमजात इन्सान रहेंगे
प्यार को अलगा पाएगा इन्सान
पशुवृत्ति सम्भोग से
शब्दों की सर्जनात्मिका शक्ति बची रह पायेगी तेरे बगैर
ओ मेरी कविता रानी!
बिना कविता के सारे आदमजाद हैवान नहीं हो जायेंगे
मैं नहीं करता इंकार
कि बदले हैं मायने इंसानियत के
बाजार ने बना दिया हर चीज को पण्य
तुम्हे भी दल्ले किस्म के हास्य-कवियों ने
बना दिया है सस्ता नचनिया
लोग खोजते हैं कविताओं में गुदगुदी और उत्तेजना
तो भी ओ कविता,
मैं करता भी हूँ
और दिलाता भी हूँ तुम्हे यकीन
कि प्यार और कविता का कोई विकल्प हो ही नहीं सकता
चाहे सटोरिये, चटोरिये, पचोरिये -
लगा लें कितना भी जोर
मुझे अहसास है
कि जिस भी दिल में साँस लेती होगी इंसानियत
उस दिल में तुम्हारा कमरा होगा ज़रूर ।
कविता, ओ कविता !
एक बार ज़रा मुस्कुरा दो जी खोल कर ।

सोमवार, 1 जून 2009

माधोप्रसाद की छोटी सी दुनिया

अब आप लोगों के लिए माधोप्रसाद अपरिचित नही रहे। पढ़े-लिखे अच्छी नौकरी करने वाले और विचार से प्रगतिशील मनुष्य हैं । कुछ बातें , माधोप्रसाद के विषय में , स्पष्ट कर देना चाहता हूँ :
१) माधोप्रसाद सर्व-स्वीकृत मनुष्य हैं, यानि किसी को कोई शक-शुबहा नहीं है उनके आदमजाद होने पर।
२) माधोप्रसाद की एक पत्नी है ।
३) माधोप्रसाद का एक ससुर भी है, जो रिटायर्ड है। माधोप्रसाद के अनुसार , ससुरे के पास बहुत माल है। यह विश्वास माधोप्रसाद के लिए बेचैनी का सबब है।
४) माधोप्रसाद अपनी पत्नी को मुर्ख और खुबसूरत मानता है।
५) माधोप्रसाद का एक बाप भी है जो जीवित है ।
६) माधोप्रसाद के तीन और भाई हैं ।
७) जैसे माधोप्रसाद का बाप सचमुच माधोप्रसाद का बाप ही है, वैसे ही भाई भी इसके भाई ही हैं।
८) माधोप्रसाद अपने को बहुत होशियार समझता है ।
९) माधोप्रसाद अपनी होशियारी या चालाकी या कमीनापन या इस तरह का और कुछ भी .... सब तिकड़म -अपनी पत्नी, अपने ससुर, अपने बाप और अपने भाइयों पर ही आजमाता है ।
कहना न होगा , माधोप्रसाद अपने काम में पूरी तरह सफल है - तो भी माधोप्रसाद दिन-रात, सुबह-शाम, जब-तब अपने इन्हीं लोगों को उल्लू बना कर लूटने के सपने देखता है और योजनाएं बनाता है ।
यही माधोप्रसाद की छोटी सी , प्यारी सी दुनिया है। माधोप्रसाद अपनी उस दुनिया में खूब तरक्की कर रहा है। माधोप्रसाद को आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि उसके दोस्त मित्र उससे ईर्ष्या करते है ।
१०) माधोप्रसाद शर्म को कमजोरी मानता है , वह शर्म की दीवार को पार चुका है। बेशर्म होने को सफलता की कुंजी मानता है।