मंगलवार, 7 सितंबर 2010

मैं एक शिक्षक (कविता )

मैं एक शिक्षक
एक मध्यम वर्ग का संकुचित,
कुंठित आदमी।
बाहर की दुनिया में हुई तब्दीली से
बाखबर,
चंद सपने- अपने, बच्चों के, परिवार के
बहुत अधिक अपेक्षाएं दुनिया की, समाज की
सपनों और अपेक्षाओं की प्रत्यंचा से
धनुष की तरह तना मैं
एक शिक्षक
न तो ढंग से किसी बाप का फर्ज निभाया
न बेटे , भाई या पति का
उपहारों में पाए ज्ञान का बोझ
पीठ पर लादे
लद्दू घोड़े की तरह
सच जैसे दिखने वाले झूठ को
सिखाते हुए
मर जाता है जो जमीर
जिनका जमीर बच गया जिन्दा
वे बन जाते दलाल, नेता या प्रोपर्टी-डीलर
लेकिन जो होते हैं शुद्ध शिक्षक
वे मरते मरते
बचा पाता है चंद शब्द,
' बेचारा बड़ा ही भला था '
लेकिन कोई कभी समझ न पाया दर्द
कि मक्कार और ऐयाश माँ-बाप के बच्चों को
इंसानियत का पाठ पढाना कितना मुश्किल होता है
और कितना जिल्लत भरा।