शनिवार, 12 जुलाई 2008

आरुषि की मृत्यु पर महाभोज

माफ़ कीजिए , आरुषि को मैं नहीं जानता जितना आप सब जानते होंगे लेकिन उस पर मंडराते हुए चील-कौओं को रोज़ देखता हूँ अपने कर्कश आवाज़ में , उत्तेजित हो-हो कर भारत की सबसे बड़ी मर्डर-मिस्ट्री को चटकारों के साथ आपके सामने परोसते हैं टीवी रिपोर्टर और आप अपना पेशाब रोक कर उसे सुनते है वो अनाप-शनाप अनर्गल दास्ताँ
आरुषि मारी गई प्यारी सी मासूम लड़की !
टीवी उसे और उसकी मौत को बाज़ार में बेच रही है और खरीदार कौन ? आप
राजेश तलवार हत्यारा है या नहीं?
अच्छा राजेश को ज़मानत मिल गई !
आरुषि मारी गई ; अब आपको किस बात में दिलचस्पी है !
अगर आरुषि का हत्यारा पकड़ा जायेगा तो आपकी पत्नी अपने यार के साथ रंगरेलियां नहीं मनाएंगी? या आपकी बूढी हो रही कुंवारी बेटी की शादी हो जायेगी या आपका बॉस आपको लतियाना छोड़ देगा ....
या आपका महान भारत विश्व शक्ति बन जायेगा ...
कौन हैं आप ?
आपको आरुषि की हत्या में इतनी तन्मयता किस लिए ?
भारत में.... छोडिये आपकी दिल्ली में ही इतनी वारदातें होती हैं ,आपको इतनी चिंता होती है या आरुषि से कोई विशेष प्रेम?
मिडिया ने आपको बेवकूफ बनाया और आप नहा धो कर बेवकूफ बन गए
इसमे आप ये भी भूल गए - आपकी अपने बेटी की तबियत ख़राब है , बेटा कबसे होमवर्क के लिए कह रहा है ;
पत्नी के सर में दर्द है .....
कौन है आरुषि !
अगर उस मासूम के प्रति जरा भी सहानुभूति है तो मिडिया चील-गिद्धों द्वारा किए जा रहे गोश्त के बंटवारे में हिस्सेदार न बनिए । वे तो उस गरीब की मौत का जश्न मना रहे हैं - महाभोज मना रहे है ; उस महाभोज का नाम रखा गया है- भारत की सबसे बड़ी मर्डर -मिस्टरी
कभी आपने सोचा - इस केस में हमारी दिलचस्पी क्यों होनी चाहिए ?
माफ़ कीजिये -अगर महा -भोज में सिरकत करने से मैं रोक तो नहीं सकता लेकिन लानत तो भेजूंगा उन हैवानों पर जो उसकी मौत का तमाशा बनते है और जो नपुंसक तमाशाई की मानिंद उसकी रूह की छीछालेदर होते देख कर लुत्फ़ उठाते है
मैं बेहद शर्मशार हूँ मैं जैसे लोगों का हम -शहर हूँ !

2 टिप्‍पणियां:

Dr. Bhaskar ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है, मैं पूरी तरह आपके विचारों से सहमत हूं. इन खबरों की वजह से न्यूज चैनल से नफरत सी हो गई है. इसी तरह अपने विचारों को व्यक्त किया कीजिए.

महेन ने कहा…

ऐसा अकसर होता रहा है और मुझे इसके बहिष्कार का एक ही तरीका नज़र आता है, कि इस बारे में न बात की जाए, न पढ़ा जाए, न देखा जाए। इस बारे में लिखकर भी हम इसे तूल ही दे रहे हैं; कयों?
शुभम।