गुरुवार, 10 जुलाई 2008

वह चुप था क्योंकि

-कुछ बोलना नहीं चाहता था
-बात समझ नहीं पाया था
-सही समय की प्रतीक्षा में था
-उसे बोलना अच्छा नहीं लग रहा था
-वह डर रहा था
-वह किसीके सामने खुलना नहीं चाह रहा था
-वह हतप्रभ था
-वह सामने वाले की ताकत जानता था
-वह सामने वाले की हद जानना चाहता था
-वह सब सुनने को मजबूर था
कारण और भी हो सकते हैं कहने का तात्पर्य बस इतना सा है कि कविता में जहाँ शब्द की सीमा समाप्त होती है
कविता का मर्म वहीं से शुरू होता है
शब्दों में कविता खोजने वाले 'बालबुद्धि' होते है -जो लिखते भी उथले हैं और पढ़ते भी शब्दों को हैं
मैं बबुरी डूबन डरी रही किनारे बैठ
ऊपर तो तन है ,मन कहीं गहरे है बहुत गहरे .......
खैर अब आप की बारी है
बचाना तो पड़ेगा कविता को प्रोपगंडा या विज्ञप्ति बनने से

1 टिप्पणी:

महेन ने कहा…

अरे बंधु,
काहे गोवर्धन पहाड़ उठा कर खड़े हो? जो कविता नहीं होगी, वह वैसे भी नहीं बचेगी। इसे भी नियंत्रित किया जा सकेगा क्या? और यदि हाँ तो भी हम और आप रामचंद्र शुक्ल नहीं हुए हैं अभी।