इन दिनों बहुत सारे हिन्दी चैनलों पर ढेर सारे " रियलिटी शो" प्रसारित हो रहे हैं, हो चुके हैं। इनमे कौन बनेगा करोड़पति , इंडियन आइडल , बिग बॉस , ख़तरों के खिलाड़ी, राखी का स्वयंवर वगैरह हैं। इसकी रियलिटी पर चर्चा अभी थोडी देर बाद करेंगे पर यह एक इसी की सच्चाई है कि इसे देखने को शहरी मध्य-वर्ग का बड़ा जत्था जन लगाये रहता है। इसी सच्चाई के बल पर इन्हें विज्ञापन मिलते हैं और इन्हीं विज्ञापनों के बल पर यानि पैसे बनने के लिए चैनल और निर्माता इस तरह के शो याने तमाशा बनते और दिखाते हैं। इनमे कोई मैसेज नहीं होता , कोई सामाजिक सरोकार नहीं होता - शुद्ध तमाशा होता है। लेकिन ये कार्यक्रम टीआर पी रेटिंग से बहार नहीं होता - उसी का मोहताज होता है। इन सबके बावजूद इस तरह के तमाशों का दर्शक " परम असंतुष्ट महान भारतीय मध्य-वर्ग " ही होता है जो अपनी वर्तमान स्थिति से गहरे तक प्रताडित होता है। इन दर्शकों के असंतोष कई तरह के होते है, मसलन , कोई अपने दाम्पत्य से असंतुष्ट है, कोई वित्तीय स्थिति से, तो किसी को लगता है कि उसकी प्रतिभा को पहचाना नहीं गया । सबब अलग-अलग होते हैं - मर्ज़ कोई एक है, असंतोष। यहाँ मेरा कहना है कि रियलिटी शो को देखने से कहीं अधिक रोचक और मज़ेदार है रियलिटी शो को देखने वालों को देखना । मौका मिले तो कभी गौर से इन्हें भी अवश्य देखें, विश्वास दिलाता हूँ मज़ा ज़रूर आएगा । दर्शक पहले -दूसरे एपिसोड में अपना निर्णय बनता है और उसीको देखता हुआ पूरा सीरिज बिला नागा देख जाता है । उसकी जीत में अपनी जीत देखता है और उसकी हर में भ्रष्टाचार देखता है। अब थोडी चर्चा 'शो' की रियलिटी की , षडयंत्र की करते हैं।
इसके विजेता को बहुधा एक-दो करोड़ , पचास लाख जैसी बड़ी रकम देने की बात की जाती है। जो भी जीतेगा उसे मालामाल कर दिया जाएगा । अर्थात यह एक तरह की प्रतियोगिता है जिसमें किसी एक को जितना है । उस एक की जीत में पूरा "हिंदुस्तान" ( उनके कहे अनुसार ) शामिल होता है। और सचमुच हिन्दुस्तानी चिरकुटों का बहुत बड़ा जत्था भूखे पेट, खाना खाकर या खाना खाते हुए भिड़ा रहता है। हमने देखा है कि रियलिटी शो सामान्यतः दो तरह के हैं: एक जिसमे एक या दो -तीन सेलेब्रिटी होते हैं जो ख़ुद जीतने या हारने के लिए नहीं आए होते हैं बल्कि जीत हार विवाद से बचाने ( सही मायने में विवाद पैदा करने ) के लिए आए होते हैं और कुछ अन्य आम-आदमी , जो प्रतिभागी होते हैं। दूसरे तरह के शो में कुछ बूढे और परित्यक्त से सेलिब्रिटी होते हैं जो वहां जाकर फिर से चर्चा में आने की जुगत करते हैं।
जिन शो में कथित आम-आदमी शामिल नहीं होता , वे तुलनात्मक रूप से कम हिट होता है। लेकिन जिसमे आम-आदमी को महान बनाने का नारा होता है वह अधिक लोकप्रिय होता है। कौन बनेगा करोड़पति, इंडियन आइडल , सा-रे-गा-मा-पा, वगैरह इसी तरह के शो थे / हैं। राखी का स्वयंवर भी कुछ इसी तरह का था , किंतु इसमें राखी सावंत की अपनी कमाई हुई प्रसिद्धि भी शामिल थी।
इस तरह के रियलिटी शो हर आम शहरी को स्टार बनाने का वादा करता है , इस लुभावने सपने से दिग्भ्रमित करता है और लोग खुली आंखों ऐसे सपने देखते हैं। शो में चुने जाने की उम्मीद में आए लाखों बेवकूफों की भीड़ को अक्सर दिखाया जाता रहता है। जो आने का मौका जीतता है, वह जग जीतता है । उसके बाप,माँ, पति, पत्नी, बहन , भाई वगैरह को आप शो के दौरान कैमरों में देख सकते है - रामानंद सागर के सीरियल के बंदरों की तरह उनकी आंकें चमकती रहती है। ये रिश्तेदार कौन होते हैं? शो में भाग लेने वालों के आम आदमी होने का सबूत होते हैं। रोना , हँसना , हँसी-मजाक इसके मसाले होते हैं। और एक बार ' भयानक-विवाद ' को अंजाम दिलाया जाता है ताकि प्रमाणिकता की ग़लत फहमी बनी रहे। इस तरह के सीरियलों में जजों का भी अपना ही एक अलग जायका होता है। ये लो केमिस्ट्री की बातें बहुत करते हैं ।
संक्षेप में , इस तरह के रियलिटी-शो , इसके निर्माता और जज -- भाग्य-विधाता बनने का षडयंत्र रच रहे हैं और सपने की दुनिया में जीने वाले खासो-आम शहरी ख़ुद को , अपने बच्चों को उन विधाताओं के हवाले कर रहे हैं, उनके हाथ की कठपुतलियां बना रहे हैं। दोष शो बनने वालों का है या जजों का है या चैनल का या आपका और हमारा है।
हमें याद रखना होगा कि वे बाज़ार में खड़े हैं मुनाफा कमाना उनका एक मात्र ध्येय है। एक बदसूरत सी लड़की के स्वयंवर का तमाशा कई करोड़ का व्यवसाय कर जाता है और आप इलेश और मानस में तुलना करते रह जाते हैं।
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2 टिप्पणियां:
बहुत सही.जब तक इन रियलिटी शोज़ को दर्शक मिलते रहेंगे तब तक ये सब को मूर्ख बनाते रहेंगे.
darshakon ka mazra to ye hai, jaise begani shadi me abdulla deevana.
Vandnaji, sirf murkh hi nahi banate, bhukh aur asantosh bhi jagate hai.
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