शुभकामनाएँ ह्रदय की अतल गहराई से !
स्वतंत्रता यानि आज़ादी।
क्या हम सबको आज़ादी पसंद है ?
हमने कभी विचार करके देखा है कि हम कितने बंधन में हैं ?
जैसे ही हम सुख का सपना देखेंगे- हम बंधन को , परतंत्रता को निमंत्रण दे देंगे।
और हमने किया।
गांधीजी ने स्वावलंबन की शिक्षा दी, हमने आधुनिकता की दुहाई देकर उससे किनारा कर लिया।
मैं बाहर देखने को नहीं , अपने आपको और अपने अन्दर देखने का निवेदन करता हूँ । आपको वहीँ अपनी आज़ादी तडपती हुई और लथपथ सी तडपती हुई दिखाई देगी।
वो बाज़ार है जिसके आप स्वेच्छा से गुलाम हो गए हैं, सुविधा के लालच में ..........
ऐसा थोड़े ही है कि गुलामी सुख नहीं देती है, देती है जरूर लेकिन अपने इशारे नाचती भी।
खैर!
१५ अगस्त , स्वतंत्रता दिवस आप सबको बहुत बहुत मुबारक हो। नमस्ते।
शनिवार, 14 अगस्त 2010
सोमवार, 9 अगस्त 2010
जाति पर आधारित जनगणना ज़रूरी है क्योंकि.......
जाति पर आधारित जनगणना ज़रूरी और बहुत ज़रूरी है क्योंकि हमारे महान देश में बहुत सारे संवैधानिक व्यवस्था जाति के आधार पर ही तय होती है। यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण हो सकती है, लेकिन यह एक तथ्य है। इससे कोई इंकार नहीं कर सकता।
बहुत लोग ऐसे हैं जो इस जातीय अंधकार का फायदा उठाकर अपने दुश्चक्रों को पूरा कर लेते हैं। मसलन, बहुत सारे ऐसे लोग है जो सवर्ण होते हुए अनुसूचित जाति का नकली दस्तावेज बनवा कर वैसी सरकारी नौकरी और सुविधाएँ प्राप्त कर लेता है जिसके लिए वह सर्वथा अयोग्य होता है। आप नजरें उठाकर देखें तो आप खुद भी ऐसे नीच किस्म के लोग दिख जाएँगे। ऐसा सिर्फ इसलिए होता है कि हमारे संविधान ने ऐसी सुविधाओं की व्यवस्था पहले ही कर राखी है।
और कहने की आवश्यकता नहीं है कि कोई भी विवेकशील, प्रगतिशील और न्यायप्रिय व्यक्ति ऐसे दुश्चक्रों का समर्थन करना पसंद नहीं करेगा।
यदि जाति की संवैधानिकता पहली बार तय हो रही होती तो शायद विरोध करने का कोई अर्थ भी होता। लेकिन जब यह एक सुनियोजित व्यवस्था की तरह हमारे देश पर फरहरा लहरा रही है वैसे में इसके विरोध का कोई औचित्य समझ में नहीं आ रहा है, कि कुछ मतवाले लोग की बात का विरोध कर रहे है।
एक व्यक्ति को मैं जानता हूँ, अपने प्रान्त में वह अन्य पिछड़ा वर्ग में आता है, वह इसी वर्ग का प्रमाणपत्र बनवाने गया , लेकिन जो भी मूर्ख अफसर या क्लर्क बैठा था, उसने उससे कहा कि उसका अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र बनेगा और उसने बनवा भी लिया क्योंकि इसमें अधिक फायदा था। ऐसे जातीय अंधेपन को दूर भागने का एक मात्र जरिया है जाति-आधारित जनगणना।
मित्रो,
जाति पर आधारित कदाचार, समर्थन और घेरे बंदी का विरोध किया जा सकता है तो करें। इस कृत्य हमारा भी सहयोग होगा।
बहुत लोग ऐसे हैं जो इस जातीय अंधकार का फायदा उठाकर अपने दुश्चक्रों को पूरा कर लेते हैं। मसलन, बहुत सारे ऐसे लोग है जो सवर्ण होते हुए अनुसूचित जाति का नकली दस्तावेज बनवा कर वैसी सरकारी नौकरी और सुविधाएँ प्राप्त कर लेता है जिसके लिए वह सर्वथा अयोग्य होता है। आप नजरें उठाकर देखें तो आप खुद भी ऐसे नीच किस्म के लोग दिख जाएँगे। ऐसा सिर्फ इसलिए होता है कि हमारे संविधान ने ऐसी सुविधाओं की व्यवस्था पहले ही कर राखी है।
और कहने की आवश्यकता नहीं है कि कोई भी विवेकशील, प्रगतिशील और न्यायप्रिय व्यक्ति ऐसे दुश्चक्रों का समर्थन करना पसंद नहीं करेगा।
यदि जाति की संवैधानिकता पहली बार तय हो रही होती तो शायद विरोध करने का कोई अर्थ भी होता। लेकिन जब यह एक सुनियोजित व्यवस्था की तरह हमारे देश पर फरहरा लहरा रही है वैसे में इसके विरोध का कोई औचित्य समझ में नहीं आ रहा है, कि कुछ मतवाले लोग की बात का विरोध कर रहे है।
एक व्यक्ति को मैं जानता हूँ, अपने प्रान्त में वह अन्य पिछड़ा वर्ग में आता है, वह इसी वर्ग का प्रमाणपत्र बनवाने गया , लेकिन जो भी मूर्ख अफसर या क्लर्क बैठा था, उसने उससे कहा कि उसका अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र बनेगा और उसने बनवा भी लिया क्योंकि इसमें अधिक फायदा था। ऐसे जातीय अंधेपन को दूर भागने का एक मात्र जरिया है जाति-आधारित जनगणना।
मित्रो,
जाति पर आधारित कदाचार, समर्थन और घेरे बंदी का विरोध किया जा सकता है तो करें। इस कृत्य हमारा भी सहयोग होगा।
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