मैं इन भावुक समाज-सुधारकों से खुले तौर पर बताना भी चाहता हूँ और पूछना भी चाहता हूँ कि हमारा संविधान जात-पांत के भेद भाव को स्वीकार करता है, तो क्या आज से पहले किसी जातिवाद विरोधी ने संविधान के विवेक पर सवाल उठाया ? नहीं।
संविधान जाति के आधार विशेषाधिकार देने को तैयार है तो जनगणना में जाति का स्पष्टीकरण आ ही जाएगा तो क्या फर्क पर जाएगा ?
हाँ , कुछ लोगो को जाति बताने में दिक्कत आ सकती है। जैसे कांग्रेस के एक महासचिव को।
मुझसे व्यक्तिगत राय ली जाय तो मैं यही कहना चाहूँगा कि मैं बहुत ही उत्सुक हूँ।
जब तक बाप का नाम पूछा जाता रहेगा, जाति बनी रहेगी।
क्या जब आपको किसी खास जाति का बताया जाता है, सम्मानित करने या अपमानित करने को, तो क्या आपका ह्रदय इसे अनसुना कर पता है ।
मैंने तो हिंदुस्तान के लोगो को दो दो जाति सूचक नाम लिखते देखा है, जनगणना में तो एक जाति पूछी जानी है। इसके विरोधियों के पास कोई ठोस तर्क नहीं।
जाति एक सामाजिक तथ्य है , इसे स्वीकार करने में न कोई हर्ज़ है और न ही कोई नुकसान।
मैंने जब सुना था कि जाति पर आधारित जनगणना होने वाली है तब से मुझे गुदगुदी सी अनुभूति हो रही है क्योंकि इससे जातिवादियों की कलई खुलेगी जो भारतीय समाज के समग्र उत्थान के लिए लाभकारी ही साबित होगा।
शुक्रवार, 28 मई 2010
रविवार, 16 मई 2010
जाति और जातिवाद को लेकर इतनी घबराहट क्यों है ?
जाति को जनगणना के प्रोफार्मा में एक कालम बनने की बात जबसे आई है- लोगों में, खासकर तथाकथित बुद्धिजीवियों में अजीब सी घबराहट दिखाई दे रही है। समझ में नहीं आता कि यह घबराहट क्यों है ?
कहना न होगा कि जाति का सम्बन्ध जन्म से है और जब तक किसी नाम के साथ बाप का नाम जोड़ा जाता रहेगा, जाति अपने आप प्रसृत होती रहेगी। बहुत से समझदार लोगों को लगता है कि जाति का निर्माण किया गया है। किसी काल में कुछ सत्ताधारियों ने पंचायत बुलाकर जाति तय कर दी। लेकिन क्या ऐसा किया जा सकता है ? यह निवेदन उन लोगों से है, जो ऐसा सोचते है कि जाति एक निर्मिति है, एक बनायीं गई व्यवस्था है।
जाति का सम्बन्ध परिवार से है, परिवारवाद से है। यदि किसी में हिम्मत और नैतिक बल हैं तो परिवारवाद का विरोध करे। इंदिरा गाँधी का परिवार, फारुख अब्लुल्ला का परिवार, मुलायम सिंह यादव का परिवार, करूणानिधि का परिवार वगैरह, वगैरह। ढूंढने जाओ तो आपके इस महान देश में सैकड़ों परिवार का, जो परिवारवादी हैं , आप खुले दिल से समर्थन करते हैं। उस समय आपको जातिवाद नहीं खटकता है।
कोई जनगणना में आये " जाति " शब्द से चाहे जितनी चिढ जताए , कोई अपनी जाति भारतीय बताए , कोई गर्व करे या कोई घृणा दिखाए। बात समझने और विचार करने की यह है कि यदि जाति और जातिवाद इतनी गन्दी और कुत्सित बात है तो सबसे पहले इसे संविधान से निकलवाने का आन्दोलन करें और दूसरी बात इसे एक बार व्यवस्थित तो होने दें। यदि यह सचमुच बुरा होगा तो इसे समाज और जनमानस अपने त्याग देगा।
जाति की सूचना घबराने की वस्तु नहीं, धैर्य रखे और आप स्वयं किसी जाति-आधारित गोष्ठियों में न जाएँ।
सिर्फ कह देने से आप जाति का समर्थन नहीं करते, यह साबित नहीं हो जाता कि आप जातिवाद विरोधी हैं। आप कुछ भी करे तो आपको उचित लगता है और यदि आपके कृत्य को सैद्धांतिक जामा पहनाया जा रहा है तो आपका जी जलता है।
मैं इस " जाति आधारित जनगणना " का समर्थन करना चाहता हूँ ताकि छुपे हुए जाति का प्रपंच करने वालों से निज़ात मिलेगी। हजारों वर्षों से विद्वानों ने हमें यही तो सिखलाया है कि सत्य को अनावृत करो, यदि यह ढकोसला होगा तो स्वतः नष्ट हो जाएगा। इसलिए हे जाति और जातिवाद के छद्म विरोधियो ! धैर्य रखें, बिलकुल न घबराएँ।
कहना न होगा कि जाति का सम्बन्ध जन्म से है और जब तक किसी नाम के साथ बाप का नाम जोड़ा जाता रहेगा, जाति अपने आप प्रसृत होती रहेगी। बहुत से समझदार लोगों को लगता है कि जाति का निर्माण किया गया है। किसी काल में कुछ सत्ताधारियों ने पंचायत बुलाकर जाति तय कर दी। लेकिन क्या ऐसा किया जा सकता है ? यह निवेदन उन लोगों से है, जो ऐसा सोचते है कि जाति एक निर्मिति है, एक बनायीं गई व्यवस्था है।
जाति का सम्बन्ध परिवार से है, परिवारवाद से है। यदि किसी में हिम्मत और नैतिक बल हैं तो परिवारवाद का विरोध करे। इंदिरा गाँधी का परिवार, फारुख अब्लुल्ला का परिवार, मुलायम सिंह यादव का परिवार, करूणानिधि का परिवार वगैरह, वगैरह। ढूंढने जाओ तो आपके इस महान देश में सैकड़ों परिवार का, जो परिवारवादी हैं , आप खुले दिल से समर्थन करते हैं। उस समय आपको जातिवाद नहीं खटकता है।
कोई जनगणना में आये " जाति " शब्द से चाहे जितनी चिढ जताए , कोई अपनी जाति भारतीय बताए , कोई गर्व करे या कोई घृणा दिखाए। बात समझने और विचार करने की यह है कि यदि जाति और जातिवाद इतनी गन्दी और कुत्सित बात है तो सबसे पहले इसे संविधान से निकलवाने का आन्दोलन करें और दूसरी बात इसे एक बार व्यवस्थित तो होने दें। यदि यह सचमुच बुरा होगा तो इसे समाज और जनमानस अपने त्याग देगा।
जाति की सूचना घबराने की वस्तु नहीं, धैर्य रखे और आप स्वयं किसी जाति-आधारित गोष्ठियों में न जाएँ।
सिर्फ कह देने से आप जाति का समर्थन नहीं करते, यह साबित नहीं हो जाता कि आप जातिवाद विरोधी हैं। आप कुछ भी करे तो आपको उचित लगता है और यदि आपके कृत्य को सैद्धांतिक जामा पहनाया जा रहा है तो आपका जी जलता है।
मैं इस " जाति आधारित जनगणना " का समर्थन करना चाहता हूँ ताकि छुपे हुए जाति का प्रपंच करने वालों से निज़ात मिलेगी। हजारों वर्षों से विद्वानों ने हमें यही तो सिखलाया है कि सत्य को अनावृत करो, यदि यह ढकोसला होगा तो स्वतः नष्ट हो जाएगा। इसलिए हे जाति और जातिवाद के छद्म विरोधियो ! धैर्य रखें, बिलकुल न घबराएँ।
सोमवार, 10 मई 2010
ललित मोदी नहीं, दलित मोदी
बड़ा ही मज़ेदार वाकया है।
प्लेटो ने समझाया था कि गणतंत्र में तीन तरह के लोग होते है- १) जो खिलाडियों से खेल कराता है यानि सत्ताधारी वर्ग, २) जो खेल दिखाता है यानि परफोरमर, मसलन धोनी, सचिन, युवराज वगैरह और ३) जो खेल देखता है और पैसा फेंकता है यानि जनता यानि मैं, आप, मेरे और आपके पडोसी।
ये हिसाब था छोटे से गणतंत्र का।
हमारा भारत महान गणतंत्र है। यदि आपको नहीं पता है तो अपना सामान्य ज्ञान बढाइये।
तो उस महान गणतंत्र में, ( वैसे सभी गणतंत्रों में ) बेवकूफों यानि जनता की संख्या बड़ी, बहुत बड़ी होती है। मैं उन लोगों से करबद्ध क्षमा मांगता हूँ जिन्हें बेवकूफ होते हुए भी कहलाना पसंद नहीं है, आशा नहीं पूर्ण विश्वास है, माफ़ जरुर करेंगे। जैसे थरूर, अपने भूतपूर्व मंत्री जी , को माफ़ किया। मैं तो बेवकूफ कह रहा हूँ , वे तो जानवर कह रहे थे। भूल गये क्या कैटल क्लास ?
सो खेल करवाने वाले तो कहाँ कहाँ विराजते है यह सरकारें भी नहीं जान पाती, हम तो निरीह जनता हैं। हाँ , हो सकता भगवान जानता हो, पर हम भगवान को नहीं जानते, वर्ना उन्हीं न पूछ लेते कि भैया ये दाऊद नाम की कहानी का असली हीरो कहाँ रहता है ? या यही बता दो कि कोई दाऊद है भी या कोई हमारा अपना ही उसके नाम पर खेल खेला रहा है ?
तो भाई , यह गणतंत्र है और गणतंत्र में जब जनता खुश तो सरकार खुश। दाऊद की थोड़ी सी बुराई करके सट्टा-बाज़ार खुश, अख़बार खुश, तो बेचारा ललित मोदी को क्यों घेरा गया? क्यों उसे दबा कुचल कर दलित मोदी कर दिया ?
सुनंदा पुष्कर जैसी संभ्रांत महिला से जो भिड गया था । उससे जिसने दो दो खसम को किक कर दिया है पहले ही, थरूर को उसका सुरूर हुआ - इसी वजह से सारा कुसूर हुआ।
भूल गए क्या ?
पांचाली के साथ ऐसी गुस्ताखी दुश्शासन ने किया था जिस कारण भीम ने उसकी छाती के लहू से द्रौपदी की केश सज्जा की थी।
माफ़ करना भाई ललित मोदी, थरूर तुम्हारा दलन अवश्य करवाएगा सो तुम्हारा दलित मोदी बनना तय मानो और हम खेल के प्रेमियों बेवकूफ जनता को तो माफ़ ही कर दो।
प्लेटो ने समझाया था कि गणतंत्र में तीन तरह के लोग होते है- १) जो खिलाडियों से खेल कराता है यानि सत्ताधारी वर्ग, २) जो खेल दिखाता है यानि परफोरमर, मसलन धोनी, सचिन, युवराज वगैरह और ३) जो खेल देखता है और पैसा फेंकता है यानि जनता यानि मैं, आप, मेरे और आपके पडोसी।
ये हिसाब था छोटे से गणतंत्र का।
हमारा भारत महान गणतंत्र है। यदि आपको नहीं पता है तो अपना सामान्य ज्ञान बढाइये।
तो उस महान गणतंत्र में, ( वैसे सभी गणतंत्रों में ) बेवकूफों यानि जनता की संख्या बड़ी, बहुत बड़ी होती है। मैं उन लोगों से करबद्ध क्षमा मांगता हूँ जिन्हें बेवकूफ होते हुए भी कहलाना पसंद नहीं है, आशा नहीं पूर्ण विश्वास है, माफ़ जरुर करेंगे। जैसे थरूर, अपने भूतपूर्व मंत्री जी , को माफ़ किया। मैं तो बेवकूफ कह रहा हूँ , वे तो जानवर कह रहे थे। भूल गये क्या कैटल क्लास ?
सो खेल करवाने वाले तो कहाँ कहाँ विराजते है यह सरकारें भी नहीं जान पाती, हम तो निरीह जनता हैं। हाँ , हो सकता भगवान जानता हो, पर हम भगवान को नहीं जानते, वर्ना उन्हीं न पूछ लेते कि भैया ये दाऊद नाम की कहानी का असली हीरो कहाँ रहता है ? या यही बता दो कि कोई दाऊद है भी या कोई हमारा अपना ही उसके नाम पर खेल खेला रहा है ?
तो भाई , यह गणतंत्र है और गणतंत्र में जब जनता खुश तो सरकार खुश। दाऊद की थोड़ी सी बुराई करके सट्टा-बाज़ार खुश, अख़बार खुश, तो बेचारा ललित मोदी को क्यों घेरा गया? क्यों उसे दबा कुचल कर दलित मोदी कर दिया ?
सुनंदा पुष्कर जैसी संभ्रांत महिला से जो भिड गया था । उससे जिसने दो दो खसम को किक कर दिया है पहले ही, थरूर को उसका सुरूर हुआ - इसी वजह से सारा कुसूर हुआ।
भूल गए क्या ?
पांचाली के साथ ऐसी गुस्ताखी दुश्शासन ने किया था जिस कारण भीम ने उसकी छाती के लहू से द्रौपदी की केश सज्जा की थी।
माफ़ करना भाई ललित मोदी, थरूर तुम्हारा दलन अवश्य करवाएगा सो तुम्हारा दलित मोदी बनना तय मानो और हम खेल के प्रेमियों बेवकूफ जनता को तो माफ़ ही कर दो।
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