वह पुलिसवाला जो रिश्वत कमाने के गुर में माहिर नहीं होता, उसे अपने बॉस की लात खानी पड़ती है। जो बड़ा अफसर होता है उसे अच्छी और आदर्श की बातें करनी होती है। उन आदर्श की बातों में से छोटे पुलिसवालों को पैसे की उगाही करनी पड़ती है। एक उदहारण आपके सामने पेश करता हूँ :
समस्या आई कि बाइक का , पुरानी बाइक का इस्तेमाल आतंकवादी बमविस्फोट के लिए करते है, तो बैकों पर निगरानी रखे। बड़े साहेब ने मुंह फाड़ दिया कि हम निगरानी रख रहे हैं। फिर क्या था, छोटे छोटे थानेदार बांस-बल्ली लेकर जगह जगह बैरियर बनवाने लगा और बाइक वालों को परेशान करने लगा।
अब आप कहेंगे कि वे तो जाँच करते हैं हमें उनका सहयोग करना चाहिए क्यंकि मुद्दा नागरिक सुरक्षा का है।
देखिये, वे कुछ इस तरह नागरिक को परेशान करते है,
आपको हाथ देकर रुकवा लेंगे।
फिर आपका ड्राइविंग लाइसेंस मांगकर रख लेंगे।
फिर और बंकि कागज , जैसे इश्योरंस , आर सी , पोल्यूशन सर्टिफिकेट वगैरह मांगेंगे।
कोई कम निकला तो चालान करेंगे।
आप शरीफ दीखते है तो गहराई से काटेंगे।
आप अगर देर होने की बात कहेंगे तो यूँ ही बिना कारण और देर कराएंगे।
इन सबसे बचने का एक तरीका है। उसी के लिए ये सारा ताम-झाम होता है।
जैसे आपको रुकने का निर्देश मिलता है आप रुकें, छोटा गाँधी (रू १००) पकड़ा दे और चलते बनें।
आपको अक्सर लगेगा कि बेचारे पुलिसवालों को भी क्या ड्यूटी दे दी गई है कि बाइक स्कूटर चेक करो, लेकिन आपने कभी ऐसी गाड़ी देखी है जिसे पुलिसवालों ने पूरे कागज न होने के कारण बंद कर दिया हो।
नहीं।
बुधवार, 30 जून 2010
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