मैं ब्लॉग क्यों लिखता हूँ ?
मुझे किसी को चिट्ठी लिखना बड़ा ही भाता है। किसी की चिट्ठी आती थी तो मैं उसे दो बार तीन बार पढता था फिर चैन से , पानी पी-पीकर लम्बी , कई-कई पृष्ठों की चिट्ठियां लिखा करता था। लेकिन यह बात है मेरे बचपन की। ( यकीन कीजिए मैं भी बच्चा था ) लेकिन बुरा हो मुआ इस फोन और मोबाइल का । चिट्ठी की , प्रिय जनों की चिट्ठी की तो मौत ही हो गई , समझिए। बस , कभी कभी सरकारी , कागज वगैरह आते रहते हैं। ऐसे में जब ब्लॉग से परिचित हुआ तो कुछ राहत सी हुई।
पूरा संतोष फिर नहीं हुआ ?
कैसी बातें करते हैं जी आप ! आप को पता ही नहीं कि आप चिट्ठी लिख किसे रहे हैं तो क्या आपको लिखने का संतोष मिलेगा। हमारे ज्यादे ब्लॉग प्रेमी भाई-लोग हलकी फुल्की निरर्थक बकवास सुनना -सुनाना पसंद करते है। उन्हें चाहिए चुटकुले , गोसिप , चुगली... वगैरह वगैरह ।
तो फिर ?
तो फिर , जब भी मैं कुछ लिख रहा होता हूँ तो मेरे मन में 'कोई तुम ' अवश्य रहता है। बिना तुम की उपस्थिति के कोई भी सार्थक रचना हो ही नहीं सकती है । हार्दिक धन्यवाद ओ मेरे तुम ! सभी पोस्ट तुम्हें ही समर्पित ।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें