बुधवार, 26 जनवरी 2011

कविता की बात

मैं कविता हूँ।
मेरा जन्म हुआ या आविर्भाव, मुझे नहीं पता
पर इतना पता है कि मैं
अच्छे-बुरे, स्त्री-पुरुष, दलित-ब्राह्मण अथवा अमीर-गरीब
सभी मनुष्यों के हृदय में रहती हूँ, अवश्य रहती हूँ।
कई बार,
मनुष्यों ने मेरा इतिहास लिखने का प्रयास किया है
और हर वे अपनी ही नज़रों में
हास्यास्पद हुए।
मझे इसका मलाल रहता है हमेशा
कि लोग मुझे उपज मानते है मस्तिष्क की
कि जैसे लोग खाना बनाते है,
कपडे या फर्नीचर बनाते है
वैसे ही हमें यानि कविताओं को भी बनाना कहते हैं
वैसे हमारे साथ इस तरह के
प्रयोशालाई व्यवहार तो सभ्यता के उषाकाल से
होता ही रहा है
लेकिन अभी, इन दिनों आदमजादों का मनमाना व्यवहार
कुछ अधिक ही बढ़ गया है
विमर्शों और विचारों के बकवास के लिए
हमें तोप की तरह इस्तेमाल करते हैं
बहुधा हमारी इज्जत गालियों से भी कम होती जा रही
सतही और एकार्थक प्रलापत्मक गद्य को
कह दिया जाता है कविता
यह संकट कुछ वैसा ही है
जैसे वनस्पतियों पर हाई-ब्रिड का प्रकोप छाया है
मैं आपके भी तो हृदय में रहती हूँ
मेरे वजूद के हिफाज़त के लिए
क्या आप कुछ नहीं करेंगे ?
जी हाँ! मैं आपसे ही निवेदन करती हूँ
हमारी नस्ल को संकर होने से बचाइए
मैं कविता हूँ
मुझे दूषित मत कीजिये ...... ।

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