रविवार, 16 मई 2010

जाति और जातिवाद को लेकर इतनी घबराहट क्यों है ?

जाति को जनगणना के प्रोफार्मा में एक कालम बनने की बात जबसे आई है- लोगों में, खासकर तथाकथित बुद्धिजीवियों में अजीब सी घबराहट दिखाई दे रही है। समझ में नहीं आता कि यह घबराहट क्यों है ?
कहना न होगा कि जाति का सम्बन्ध जन्म से है और जब तक किसी नाम के साथ बाप का नाम जोड़ा जाता रहेगा, जाति अपने आप प्रसृत होती रहेगी। बहुत से समझदार लोगों को लगता है कि जाति का निर्माण किया गया है। किसी काल में कुछ सत्ताधारियों ने पंचायत बुलाकर जाति तय कर दी। लेकिन क्या ऐसा किया जा सकता है ? यह निवेदन उन लोगों से है, जो ऐसा सोचते है कि जाति एक निर्मिति है, एक बनायीं गई व्यवस्था है।
जाति का सम्बन्ध परिवार से है, परिवारवाद से है। यदि किसी में हिम्मत और नैतिक बल हैं तो परिवारवाद का विरोध करे। इंदिरा गाँधी का परिवार, फारुख अब्लुल्ला का परिवार, मुलायम सिंह यादव का परिवार, करूणानिधि का परिवार वगैरह, वगैरह। ढूंढने जाओ तो आपके इस महान देश में सैकड़ों परिवार का, जो परिवारवादी हैं , आप खुले दिल से समर्थन करते हैं। उस समय आपको जातिवाद नहीं खटकता है।
कोई जनगणना में आये " जाति " शब्द से चाहे जितनी चिढ जताए , कोई अपनी जाति भारतीय बताए , कोई गर्व करे या कोई घृणा दिखाए। बात समझने और विचार करने की यह है कि यदि जाति और जातिवाद इतनी गन्दी और कुत्सित बात है तो सबसे पहले इसे संविधान से निकलवाने का आन्दोलन करें और दूसरी बात इसे एक बार व्यवस्थित तो होने दें। यदि यह सचमुच बुरा होगा तो इसे समाज और जनमानस अपने त्याग देगा।
जाति की सूचना घबराने की वस्तु नहीं, धैर्य रखे और आप स्वयं किसी जाति-आधारित गोष्ठियों में न जाएँ।
सिर्फ कह देने से आप जाति का समर्थन नहीं करते, यह साबित नहीं हो जाता कि आप जातिवाद विरोधी हैं। आप कुछ भी करे तो आपको उचित लगता है और यदि आपके कृत्य को सैद्धांतिक जामा पहनाया जा रहा है तो आपका जी जलता है।
मैं इस " जाति आधारित जनगणना " का समर्थन करना चाहता हूँ ताकि छुपे हुए जाति का प्रपंच करने वालों से निज़ात मिलेगी। हजारों वर्षों से विद्वानों ने हमें यही तो सिखलाया है कि सत्य को अनावृत करो, यदि यह ढकोसला होगा तो स्वतः नष्ट हो जाएगा। इसलिए हे जाति और जातिवाद के छद्म विरोधियो ! धैर्य रखें, बिलकुल न घबराएँ।

1 टिप्पणी:

भास्कर ने कहा…

विरोध सत्य से परे नहीं होता, उसका आधार भी सत्य ही होता है। निर्भर करता है सत्य की परिकल्पना पर। दरअसल जाति अथवा जातिवाद जिस रूप में फलफूल रहा है केवल धैर्य इससे निजाद नहीं दिला सकता। जाति की सूचना तो पहली सीढ़ी है, फिर इसी सीढ़ी से आगे बढ़ेंगे जातिवाद की घृणित कृत्य जिसके केन्द्र में मानवता या समाज नहीं है। यूं तो बातें बहुत हैं फिलहाल तो मैं केवल इतना इंगित कर रहा हूं कि मैं आपके विचार से शायद पहली बार पूर्णत: असहमत हूं।