आप सबके लिए बनाए गए अलक्षित.ब्लागस्पाट.कॉम पर आने वाले, कविता का रसास्वादन करने वाले दुनिया भर में फैले हुए मित्रों को कवि रवीन्द्र कु दास धन्यवाद सहित नमन करता है।
दोस्तों,
कवि होना कतई अच्छी बात नहीं। यह एक बुराई है। कुछ लोग इसे छद्म व्यापार मानते और कहते हैं, किन्तु वे मित्र हैं तो झूठ नहीं कहते होंगे और मित्र हैं तो उनकी बातों का बुरा भी क्या मानना।
मैं कुछ गंभीर विषय पर आऊं, इसके पहले मैं अपने अनुज सदृश रोशन ( डा. भास्कर लाल कर्ण ) का धन्यवाद और साधुवाद आप लोगों से शेयर करना चाहता हूँ क्योकि उक्त ब्लॉग इसी महाशय के आदेश पर, और प्रयास पर भी, प्रकाश में आ पाया था। रोशन जी, धन्यवाद.
तो बात जहाँ तक कविता की है - इस विषय में दो बातें बहु- स्वीकृत हैं। एक तो यह सबसे पुरानी साहित्यिक विधा है और कविता किसे कहा जाय, यह विवाद का विषय है।
बहरहाल मैं अपने को कवि मान चुका हूँ और जो अलक्षित पर दीखता या दिखती है बेचारी कविता के रूप में ही निवेदित है।
लगभग २० वर्षों से कविता लिखता आ रहा हूँ और इसके सामानांतर यह सोचता भी आ रहा हूँ कि जो मैं लिखा है वह कविता है या नहीं ? और मैं कविता आखिर लिखता ही क्यों हूँ ? बात अचम्भे की हो सकती है पर सच यही है।
'सच यह है कि मैंने तुम्हे पा लिया था
और सच यह भी है कि तुम मुझे छोड़कर जा चुके थे।' (मेरी ही कविता ' कोई कैसे बन जाता है गीत ' से )
कविता कुछ ऐसी ही है मेरे लिए कि वह मुझसे अलग होने मचल उठती है और तब मैं उसे मुक्त कर देता हूँ लेकिन वह बद्ध होकर आप सबकी हो जाती है। मेरी रह ही कहाँ जाती!
खैर! माफ़ करें, मैंने तो बस शुक्रिया अदा करने को उद्यत हुआ था और कुछ अधिक ही कह गया.
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