मैं उस समाज का प्राणी हूँ - जहाँ स्त्रियों के मुकाबले पुरुषों में हिट है स्त्रीवाद।
बहुत सोचा कि आखिर ऐसा क्यों है ?
तो मैंने पाया कि आज भी समाज पर , उसके रिवाज़ और रवायत पर मर्दों का ही कब्ज़ा है। वे कुछ स्त्रियों से अपने बृहत् मनोरंजन का इंतजाम करवाते है ।
यदि ऐसा है तो सवाल उठता है कि वे पुरूष इस तरह की कुत्सित मानसिकता से ऐसे घिनौने षड़यंत्र क्यों करते हैं ?
ऐसा सिर्फ़ इसलिए , क्योंकि इस तरह की ऐय्याशी में न्यूनतम जोखिम है ।
आज़ादी की आकांक्षा तो शाश्वत स्वप्न है मानव-मात्र का , इसलिए स्त्रियों में भी है और यह स्वाभाविक तथा नैसर्गिक है ।
बड़े और बुद्धिमान सौदागर चीजों का नहीं , सपनों का ही कारोबार करते हैं ।
आपके सपने को पूरा करने का आश्वासन देकर आपका वजूद आपसे ले लेते हैं और स्वप्न को साकार करने के लिए स्वेच्छा से अपने आपको सौंप देते हैं।
यह एक ही ऐसा व्यवसाय है जिसमे सबको सिर्फ़ फायदा ही होता है, नुकसान किसी को नहीं होता ।
बाज़ार को जब यह समझ में आया , वह आपको स्वप्न का लालच देकर आपको बन्दर बना दिया और ख़ुद बना मदारी, वह बजता है डमरू और हम उसके इशारों पर थिरकना समसामयिक होने जैसा जरुरी समझते हैं व
थिरकते हैं।
याद कीजिए फैशन परेड को, जिसमे स्त्री प्रायः और कभी कभी पुरूष भी रोबोट की तरह चलते है, जरुरत और निर्देश के अनुसार घूमते और हाथ हिलाते हैं।
वे सिर्फ़ एक देह की तरह होते हैं, मालूम देता है कि उस शरीर में मन या आत्मा जैसी कोई चीज नहीं होगी।
लेकिन उस बे-रूह कारनामों को करने वाले हमारे समय में काफी महत्त्वपूर्ण हस्ती हैं।
इस तरह रोबोट की कैट-वाक करना हमारे कई हम-वक्तों का ख्वाब होगा ।
यह मेरा समय है,
मैं अपने समय से शर्मिंदा नहीं हूँ , मैं अपने समय को समझना चाहता हूँ।
यह भी सच है कि स्त्रियों को बेपर्दा कर कुछ मर्द इसका लुत्फ़ लेते हैं । इसमे कुछ आज़ाद-ख्याल खवातीन इन खिलाड़ियों के खेल का शिकार भी होती हैं। फिर भी, आज़ाद होने की जिद बहुत हद तक आज़ादी दिला चुकी है। यह जिद बनी रहे, इंसा-अल्लाह , बरकत होगी जरूर
यह हमारा समय है, जब ज्यादा संघर्ष सांस्कृतिक हो गई है। बस इसीसे सावधान रहने की, जहाँ तक हो सके, जरुरत है।
यही हमारा समय है, और ऐसे ही अजीब मेरे विचार हैं।
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2 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया और सठिक लिखा है आपने!
shukriya aapka. padhkar sahmati jatai aapne.
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