सोमवार, 9 नवंबर 2009

माफ़ी-नामा (कविता)

मेरी हालत ठीक नहीं है

मैंने कोई अक्षम्य अपराध कर लिया है तुम्हारे प्रति

मुझे अवश्य मिलना चाहिए दंड

किंतु मत करो मेरा त्याग

मुझे रहने दो अपने इर्द-गिर्द

मैं करता हूँ वादा , पकड़के अपने दोनों कान

कि नहीं होगी मुझसे भूल से भी कोई वैसी चूक

जो तुम्हें नागवार गुजरे

तुम्हें पाकर

हो गया था मैं दम्भी कुछ अधिक

और कर बैठा था प्रयोग अपनी शक्ति

तुम्हारे विरुद्ध

नहीं समझ में आता है इसका कोई निदान

नहीं सूझता है दो कदम चलने का भी रास्ता

बेदम और लाचार

जीने का कर रहा हूँ जी-तोड़ प्रयत्न

इसी उम्मीद से

कि शायद होगा तुम्हारा बड़ा ह्रदय

और मर सको तुम माफ़ मुझे

जाहिर सी है बात

कि मैं खो चुका हूँ

तुमसे बात तक करने का अधिकार

नहीं है मालूम कोई पता-ठिकाना भी

कि लिख भेजूं , दो पांति का माफीनामा ही

तभी तो लिख रहा हूँ कविता

कि कोई सहृदय पहुँचा मेरे आंसू के दाग

कि करे शायद चर्चा मेरी कविताओं के मजमून का

नहीं जाएगा कुछ भी माफ़ी देने में तुम्हारा

लेकिन मिल जाएगा मुझे मेरा जीवन वापस

बस ! नहीं लिखी जा पा रही कविता पूरी

यह अधूरी कविता शायद मेरा माफीनामा है

अगर तुम कर लो कुबूल तो

वैसे मैंने गलती माफ़ी के काबिल नहीं ।

1 टिप्पणी:

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

mafi ki bawna hi bahut hai...galti kitni kabil hai mafi ki ye jaroori nahi...achhi kavita...