एन डी टी वि मनोरंजन पर एक रियलिटी शो शुरू हुआ है। इसमे कुछ पुरूष हैं , कुछ स्त्रियाँ हैं और कुछ शिशु हैं। इन शोहरतजादा और शोहरतजादियों को युगल यानि पति-पत्नी की भूमिका दी गई है। ये लोग टीवी और फिल्मों के पिटे मुहरें हैं। इन्हें बच्चे पालने का तजुर्बा नहीं है, मनोरंजन का पक्ष यह है कि ये दिए गए बच्चों को पालते हुए दिखकर ये दर्शकों का मनोरंजन करेंगे और उक्त चैनल का टी आर पी बढायेंगे।
आइये , अब थोडी सी चर्चा इस वास्तविक तमाशे से जुड़े लोगों की नियत को परखें।
सबसे पहले उस माँ-बाप की नीयत को जानें जिन्होंने अपने बच्चे इस तमाशे के लिए दिए हैं। उन्हें जानवर कहना , मेरी समझ से जानवरों की तौहीन है। वे नौनिहाल, दुधमुंहे शिशु अपने माँ-बाप को पैसा कमा कर देंगे। तय है कि वे बच्चे अमिताभ बच्चन बनने का ख्वाब नहीं देखते होंगे। लेकिन माँ-बाप उनके द्वारा कमाए गए पैसे को गिन कर आनंदित तो अवश्य होते होंगे।
कोई किसी बच्चे से भीख मंगवाता है, श्रम करवाता है तो बहुत से लोग उन कृत्यों का विरोध और निंदा करने को सामने आते हैं। इन नौनिहालों का जब टी आर पी बढ़वाने में इस्तेमाल किया जा रहा है तो वे लोग किस गुफा में छिप गए है।
जब अपराधियों और आतंकवादियों को यातना दी जाती है तो मानवाधिकार वाले अपना झंडा उठा कर फटाफट पहुँच जाते हैं कि अमानुषिक यातना न दिए जाएँ तो अभी जब निकम्मे सेलिब्रिटी के हाथों अबोल शिशुओं का तमाशा बनाया जा रहा और सारे संसार के लोग टीवी पर बैठकर तमाशा देख रहा है -ऐसे में कहाँ हैं मानवाधिकार के कार्यकर्ता ?
कहाँ हैं वे लोग जो पशु के साथ दुर्व्यवहार होने पर आसमान सर पे उठा लेते हैं वे इन शिशुओं को चीखने चिल्लाने के लिए भेजे गए बच्चों के लिए क्यों नहीं कुछ करते?
सरकार इस तरह के नृशंस ' रियलिटी शो' के खिलाफ क्यों नहीं कोई कानून बना रही।
हे प्रभो! मनुष्य पैसा बनाने के लिए और कितना अधोपतित होगा ?
हे ईश्वर! किसी को भेजो या तुम ही किसी रूप में आओ और इन दुधमुहे नौनिहालों को इन भेड़ियों से बचाओ।
मनोरंजन के लिए मनुष्य इतना अमानुषिक हो सकता है- कभी सोचा न था।
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4 टिप्पणियां:
बहुत सही रवीन्द्र जी. जिस दिन से इस शो की घोषणा हुई और कुछ विज्ञापन देखे तब से ही मन-मस्तिषक सुलग सा उठा.कार्यक्रम निर्माता इतने निर्दयी हैं? और उनसे भी कहीं ज़्यादा निर्दयी हैं वे अभिभावक जिन्होंने अपने दुधमुंहे बच्चे गैरों के हवाले कर दिये.एक ओर चैनलों पर अवयस्क बच्चों के काम करने को शोषण ठह्राया जा रहा है तो दूसरी ओर " पति-पत्नी और वो" जैसे प्रोग्राम...
Aapki baat se sahmat hoon.
Deepawali ki dheron shubkamnayen.
bahut kadwai sachchayi
aur bahut zaruri hai ki koi aawaz uthaye virodh ho
aapke samarthan aur hausla-afzaai ke liye shukriya.
media hame hamara hi tamasha dikhata hai aur ham khush rahte hain.
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