बुधवार, 1 जुलाई 2009

कालिदास का सौंदर्य-सम्बन्धी ऊहापोह

कालिदास के विश्व-प्रसिद्ध नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम के दूसरे अंक में नायक दुष्यंत अपने मित्र को अपने ह्रदय-सम्राज्ञी शकुन्तला के सौन्दर्य के विषय में कुछ बता रहा है। यह नाटकीय स्थिति है। वास्तविक स्थिति कुछ और है और वह है कि स्वयं कालिदास सौन्दर्य-चिंतन कर रहे हैं। उनके मन में प्रश्न है कि सबसे सुंदर कौन है ? और वह सबसे सुंदर कहे जाने का अधिकारी कैसे है? इन्हीं प्रश्नों से जूझता हुआ यह श्लोक है। इसमें शायद इस उलझन को सुलझाने का प्रयास भी है। श्लोक कुछ इस तरह है :
चित्रे निवेश्य परिकल्पितसत्त्वयोगा ,
रूपोच्चयेन मनसा विधिना कृता नु ।
स्त्री -रत्न- सृष्टिरपरा भाति मे सा
धातुर्विभुत्वं अनुचिन्त्य वपुश्च तस्याः ।। प्रति
इसका भाव कुछ इस तरह है :
सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने शकुन्तला की सृष्टि करने से पहले पूरे मनोयोग से रूप का खजाना लेकर पहले तो उसका चित्र बनाया होगा। चित्र में भूल सुधार की गुंजायश होती है। खैर, दुष्यंत के मुख से कालिदास कहते है कि चित्र की सभी असम्पूर्णता को दूर कर फिर उसमे प्राण-प्रतिष्ठा की गई सुंदर सुंदर। स्त्री-रत्न के रूप में वह मुझको अद्वितीय प्रतीत हो रही है। विधाता ने अपनी सारी विभूति का प्रयोग करके उसके सुंदर शरीर की रचना की। नायक दुष्यंत कह रहे हैं कि शकुन्तला चित्र-लिखित की भांति सुंदर है। अर्थात सौन्दर्य का पैमाना चित्र है। चित्र स्वयं विधाता की रचना से भी श्रेष्ठ होता है।कवि कालिदास शकुन्तला को सबसे सुंदर स्त्रीरत्न के रूप में प्रस्तावित कर रहे हैं और शायद उन्हें सबसे सुंदर कह देने से संतोष नहीं हो रहा । स्थिति आसान नहीं है। इसलिए उन्होंने चित्र दृष्टान्त से बात कर रहे हैं।खैर , ये तो कालिदास का ऊहापोह रहा , आइए थोड़ा सा हम विचार करें।मैं आपसबसे एक सवाल करता हूँ।चित्र ( अनुकरण ) बेहतर होता है अथवा चित्र की वस्तु यानि जिसका चित्र बनाया गया ?सवाल बड़ा गंभीर है ।यदि आप लोगों को यह मसला विचार करने लायक लगे तो विमर्श जारी रहेगा (जिसकी उम्मीद बहुत कम है, लोग ब्लॉग पर सस्ती और हलकी बातें पसंद करते हैं , ऐसी पकाऊ और गहरी बातें नहीं, इसलिए ) इसकी सम्भावना कम है। तथापि मेरा निवेदन है कि आप विचार करें और मुझे भी अवगत कराएं।

1 टिप्पणी:

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

ravindra ji,
चित्रकार के लिए उसका चित्र ही श्रेष्ठ होता है....और वैसे भी वस्तु [यहाँ चूकि स्त्री सौन्दर्य की बात हो रही है , तो स्त्री]में सदैव गुण ही दिखाई दें ,यह मुमकिन नहीं है,जबकि चित्र हमेशा एक सा दिखाई देता है.....दुर्गुणों से मुक्त,सुन्दर,चित्रकार की कल्पना के अनुरुप...क्योंकि कभी भी कोई चित्रकार भरसक दुर्गुणों को दिखने का साहस नहीं करता और वो भी अपनी कलाकृति में.....है न....अतः वस्तु से चित्र ही श्रेष्ठ है.......
अब पुन: हर सप्ताह रविवार को सभी ब्लागों पर [ मेरी ग़ज़ल/प्रसन्नवदनचतुर्वेदी ,
रोमांटिक रचनाएं और
मेरे गीत/प्रसन्नवदनचतुर्वेदी पर ]
नई रचनाएँ पोस्ट कर रहा
हूँ ,आशा है आप का स्नेह हर रचना को पूर्ववत मिलेगा ...