तो फिर, सबको पता ही होगा कि तंत्र एक साधना है।
साधना का तात्पर्य साधक की सिद्धि में होता है। इस तंत्र- साधना में पुरूष साधक पञ्च मकार से साधना करता है। पञ्च-मकार यानि मन्त्र, मुद्रा , मत्स्य , मांस और मैथुन । पहला चार मकार सामाजिक दृष्टि से आलोचनीय नहीं है अत एव उस पर विचार के लिए तंत्र वादियों को आमंत्रित किया जाय। हमारा आलोचन तो सिर्फ़ मैथुन पर होगा क्योंकि इसमे आधा और आधा विश्व अर्थात पुरी दुनिया समाहित है। दुसरे शब्दों में, स्त्री और पुरूष। पुरूष साधक और स्त्री साधना का उपकरण । समकालीन सन्दर्भ में इसे समझने के लिए आप फैशन की दुनिया को देख सकते है जहाँ दिखती तो है स्त्री लेकिन हिट होता है कोई पुरूष (कोई स्त्री होती भी है तो उसे शक्ति स्वरूप पुरूष का छद्म रूप समझ सकते हैं।)
जारी...............
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1 टिप्पणी:
अच्छा लिखा है आपने !
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