"आपने उसे लिखने को कहा ?
जो न हमारी जाति का है , न धर्म का
पढ़ा है मैंने उसके लिखे को
न बातों का कोई सिलसिला है
न सिद्धांत का निर्णय निरपेक्ष..."
पांच साल की लंबी जुगत के बाद
जब बन पाया था संगठन में प्रवेश
नए सदस्य ने पहली करवाई कुछ ऐसे की.
यह अग्नि-परीक्षा की प्रथा है
चुगली नहीं ... प्रणाली है
पुराने सम्बन्ध के टूटने का प्रमाण
नया सम्बन्ध है.
हंस-पाद के जरिये अटक जाना
वाक्यों के बीच में
आसन्न पदों को विलगाकर
और हो जाना अपना .. दोनों का
जीवन में भाषा सुधार कार्य के माध्यम से
किसी झमेले में
या संगठन में घुसने का
आसान और सर्वथा-सिद्ध उपाय है...
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