tag:blogger.com,1999:blog-7150501284802635125.post2001084439659016889..comments2023-06-13T04:56:02.230-07:00Comments on कविता-समय: आओ भइए! विचार-विचार खेलते हैंरवीन्द्र दासhttp://www.blogger.com/profile/12304940504845206338noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-7150501284802635125.post-13373599680230192962008-07-22T03:12:00.000-07:002008-07-22T03:12:00.000-07:00अभिवादन ,सुखद संयोग से आपके ब्लॉग से परिचय हुआ परि...अभिवादन ,<BR/>सुखद संयोग से आपके ब्लॉग से परिचय हुआ <BR/>परिचय का एक मुक्तक और एक ग़ज़ल भेज रहा हूँ <BR/><BR/>मुक्तक .. <BR/><BR/>हमारी कोशिशें हैं इस, अंधेरे को मिटाने की <BR/>हमारी कोशिशें हैं इस, धरा को जगमगाने की <BR/>हमारी आँख ने काफी, बड़ा सा ख्वाब देखा है <BR/>हमारी कोशिशें हैं इक, नया सूरज उगाने की ...<BR/><BR/>ग़ज़ल<BR/><BR/>अगर अल्फाज अन्दर से निकल कर आ नहीं सकते <BR/>नशा बनकर जमाने पर ,कभी वो छा नहीं सकते <BR/><BR/>बहुत डरपोक हो सचमुच ,तुम्हारा हौसला कम है <BR/>किसी भी हाल मैं तुम मंजिलों को पा नहीं सकते <BR/><BR/>उसे सबकुछ पता है , कौन कैसे याद करता है <BR/>किसी छापे -तिलक से तुम उसे बहला नहीं सकते <BR/><BR/>सुरों की भूलकर इनसे कभी उम्मीद मत करना <BR/>समंदर चीख सकते हैं ,समंदर गा नहीं सकते <BR/><BR/>चुनौती दे रहा हूँ मैं यहाँ के सूरमाओं को <BR/>जहाँ पे आ गया हूँ मैं वहां तुम आ नहीं सकते ..... <BR/><BR/> डॉ . उदय 'मणि कौशिक<BR/><BR/> हिन्दी की कुछ और उत्कृष्ट कविताओं ,ग़ज़लों ,आदि के लिए देखिएगा <BR/>http://mainsamayhun.blogspot.com<BR/>आपकी सक्रिय पर्तक्रियाओं की प्रतीक्षा मे <BR/>डॉ . उदय 'मणि कौशिक <BR/>कोटा ,राजस्थान <BR/>umkaushik@gmail.comडा ’मणिhttps://www.blogger.com/profile/12027202350989367311noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7150501284802635125.post-56238076978008608422008-07-21T07:17:00.000-07:002008-07-21T07:17:00.000-07:00welcome bhai saabnice postwelcome bhai saab<BR/>nice postGuman singhhttps://www.blogger.com/profile/04241390274423178969noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7150501284802635125.post-69668464982746567762008-07-20T12:32:00.000-07:002008-07-20T12:32:00.000-07:00आप कवि हैं, समझ ही गए होंगे कि "रामचंद्र शुक्ल" ना...आप कवि हैं, समझ ही गए होंगे कि "रामचंद्र शुक्ल" नाम का प्रयोग मात्र प्रतीकात्मक रहा होगा और "आदेशात्मक"? कुछ समझ नहीं आया। यह पढ़ने की भूल थी या व्याकरण न समझ पाना कि यह बात आदेशात्मक प्रतीत होती है। खैर मुद्दे की बात करता हूँ। उदाहरण दिये हैं आपने उदय प्रकाश, विनोद कुमार शुक्ल के। असद और मंगलेश जी के उदाहरण भी दे सकते थे (वे दोनों तो आजकल खासी चर्चा में हैं और बेकार के मुद्दों में घसीटकर उन्हें प्रताड़ित भी किया जा रहा है)। अस्तु। आपने इन्ही के नाम क्यों दिये? जानकीवल्लभ शास्त्री या रामानंद जी का उदाहरण क्यों नहीं दिया? वे भी तो कवि थे। जो मैंने कहा वही आपने किया। जो सार्थक लिख पाएगा सिर्फ़ उसी का लेखन जीवित रहेगा, जो नहीं वह भुला दिया जायेगा और उसका लिखा भी। खुसरो शायद इसीलिये याद रह गये हैं लोगों को। जहाँ तक ब्लोगजगत में पाठक और कवि का संबंध है उसपर आप ठीक से अपनी राय रख नहीं पाए। कोई बात नहीं। जो बात आप कहने से हिचक रहे हैं वह मैं कह देता हूँ। यहाँ कुछ ऐसा है कि गुटबाज़ी चलती है। दो मूरख कविताएं लिखते हैं और एक-दूसरे को दाद देकर खुश होते रहते हैं। कविता-कविता तो वे खेलते हैं। और पुष्यमित्र जैसे कवि टिप्पणियों से वंचित रह जाते हैं। पर मेरे विचार से टिप्पणीं कोई मायने नहीं रखती। आपका पता नहीं, मैं तो परवाह नहीं करता। और हाँ अभी कुछ दिन पहले ही एक-दो स्थापित और बुद्विमान लोगों के कह चुका हूँ कि बंधुवर कृपया मात्र तारीफ़ करके न सटक लें। थोड़ी ज़िम्मेदारी उठाकर यह भी बताएँ क्या कमी है और खुलेआम बताएँ। 10 टिप्पणियों से अच्छी ऐसी एक आलोचना है। क्या कहते हो?<BR/>पता नहीं हिंदी वालों को कौनसे वाद पसंद आने लगे हैं मगर यह तय है कि हिंदी के कवि काफ़ी ज़्यादा कांशियस रहते हैं। आज ही एक ब्लोग में पढ़ा कि छंद के टूटने से कविता मर गई और आम आदमी के मन के साथ ही साथ मंच से भी उतर गई। हालांकि मैं इस विचार से सहमत हूँ मगर तो भी, कविता की दिशा कया आलोचना तय करेगी? रामचंद्र शुक्ल तो नहीं कर पाये। वह काम तो कवि का ही है न। बहने दो उसे मुक्त होकर, पानी में लाठी भांजने से क्या हो जाएगा? समय ही उसका रूप तय करेगा और जिसे समाप्त होना होगा वह तो समाप्त होगा ही। मात्राओं के नियम भी तो उतर गए संस्कृत के छंदों और उर्दु, फ़ारसी के शेरों से।महेनhttps://www.blogger.com/profile/00474480414706649387noreply@blogger.com