बुधवार, 24 मार्च 2010

वह कौन था जो झांकता था मेरी जिन्दगी में

वह कौन था जो झांकता था मेरी जिन्दगी में
और कर जाता है जलजला
गोया कभी कोई चेहरा न दिखा
जब कभी दिखा भी तो खामोश कर गया जुबान
कि वो तो दुश्मन नहीं, दोस्त ठहरे
जो बिना दस्तक दिए
मेरी चौखट में हो गए थे मेहमान
किसी ने देखा उन्हें आते या जाते कभी
जब समझ आया तो ज़माने ने कहा अपने है
वह तो बहुत बाद गुमान हुआ
कि वो मोबाईल फोन है
अब मैं खामोश हूँ
और बेजार हूँ ज़माने से
यूँ अकेलापन है तो सुकून है और राहत है
वरना वो झाँकने वाले कि मुहब्बत की कसम
हम बेचैन थे
पर खौफ नहीं अब कोई।

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