बुधवार, 25 मार्च 2009

करम-जलों खुशियाँ मनाओ

अरे करमजलो ! घी के दिए जलाओ, खुशियाँ मनाओ , नाचो-गाओ, ढोल-ताशे बजाओ ।
क्यों?
अरे भुखमारो! सुना नहीं , रतन टाटा साहेब नैनो कर लेकर आए है हम गरीबों के लिए।
सारा टीवी चैनल , सारा अख़बार , सब को देखा नही कैसे उछल रहे थे जैसे उनकी बहिनियाँ की शादी हो। यही एक कर भारत की तकदीर बदल देगी।
याद है, मारुती कर भी जनता कर होकर आई थी।
हें .... क्या फालतू बात लेकर बैठ गए?
नैनो कोई कर थोड़े है !ई तो हम गरीब का सपना है, जो देखो कि सच हो गया ।
नैनो में नैनो छाए ......
अपना बकवास बंद करो, जिसको रोटी नहीं मिलती उसके थोड़े है
इ तो इस्कूटर , मोटरसाइकिल में जो डरा करे उनके लिए।
वैसे इ टीवी के रिपोटर सब काहे इतना उछल रहे थे? कुछ समझ में नहीं आया ।
अरे बुडबक! रुपैया न दिया होगा ,
ई लोग नया जमाना के लोग हैं , इनको पैसा-रुपैया दो तो ये लोग तो माँ-बहिन को गली भी ऐसे ही दे दें।

गुरुवार, 12 मार्च 2009

स्त्री चेतना : स्त्रियों में कितनी?

आप टीवी देखते हैं ?
मुझे यकीन है , अगर आपके पास टीवी भी है और समय भी है तो आप टीवी ज़रूर देखते होंगे।
आप बाज़ार के बारे में जानते हैं ?
हाँ, हाँ, वही जहाँ आप बिकते हैं या कुछ खरीदते हुए ख़ुद को महसूस करते हैं ।
हर जगह आप स्त्रियों की बहुतायत देख सकते हैं
हर मौके पर स्त्री-शक्ति मौजूद है।
स्त्रियों की वजह से बिक्री पर फर्क पड़ता है -
इस बात को हम से बेहतर ढंग से स्त्रियाँ जानती है ?
मेरी जिज्ञासा है कि स्त्री-चेतना बाज़ार का कोई प्रायोजित प्रोपगंडा है
अथवा .........
तय है बाज़ार जेंडर-डिस्कोर्स से अतीत है
यानि बाज़ार स्त्री या पुरूष नहीं है
स्त्री-चेतना स्त्री के नज़रिए से सामाजिक संरचना को पुनर्परिभाषित करने का प्रयत्न करती है
स्त्री-चेतना मर्दवाद के यौन-शुचिता के नारे को चुनौती देती है


स्त्री-चेतना समाजनिष्ठ पुरूष का आश्रय छोड़ कर बाज़ार-निष्ठ पुरूष का आश्रय करने का परामर्श करती है ?